अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है!!

 

केसर रंग रँगे आँगन


केसर रंग रँगे आँगन गृह गृह के
टेसू के फूलों से पीले
भीतों पर रँग पड़े दिख रहे
चित्र छपे ज्यों सुंदर सुंदर
ऊँचे ढेर लगे काँसे की थालियों में
लाल हरे पीले गुलाल के

धूम मचाती होली आई
सखि डालें कलसी भर जल की
धार बहाएँ सिर से कटि तक
भीज गए बारीक वसन सब
जिनसे निकले गोरे तन की आभी हलकी

सुंदरियों के गोल बदन
लिपटे गुलाल से
ज्यों सूरज पर संध्या बादल
जोर जमा खींचे पिचकारी
मुरकी जाए नरम कलाई
छोड़ फुहारें रँग सब डालें

बजे चूड़ियाँ फिसले साड़ी
मसल गए रंग
मसल गए तन
मसल गई अब मूठी गोरी
किरण उतर कर नभ से आई
आज खेलने को ज्यों होरी
उड़ आया मदभरा समीरण
उड़े हरे पीले गुलाल संग
केसर रंग रँगे हैं आँगन
टेसू के फूलों से पीले

२१ मार्च २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter