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होली है!!

 

अमराई की छाँह में

निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल
इतराता सा वह चला, लेकर रंग गुलाल

कलियों के संकोच से, फागुन हुआ अधीर
वन-उपवन के भाल पर, मलता गया अबीर

टेसू पर उसने किया, बंकिम दृष्टि निपात
लाल, लाज से हो गया, वसन हीन था गात

अमराई की छाँव में, फागुन छेड़े गीत
बेचारे बौरा गए, गात हो गए पीत

फागुन और बसंत मिल, करें हास-परिहास
उनको हंसता देखकर, पतझर हुआ उदास

महेन्द्र वर्मा
१२ मार्च २०१२

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