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                        होली है
                        
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						मौसम के 
						सुरताल |  
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                                      |  | उल्लासित जीवन हुआ, नेह-स्नेह का 
					रंग। फागुन लेकर आ गया, मन में नई उमंग॥
 
 होली में ऐसे चले, रंगों की बौछार।
 चुन-चुनकर फिर से जुड़ें, टूटे मन के तार॥
 
 कड़वाहट भूले सभी, मन में नहीं मलाल।
 होली के हड़दंग में, ज्यों ही उड़ा 
					गुलाल॥
 
 पीहर में जब से मिला, है प्रियतम का हाल।
 सुर्ख फागुनी हो चले, हैं गोरी के गाल॥
 
 सतरंगी से हो गए, मौसम के सुरताल।
 पहर-पहर मन मोहते, जादू का संजाल॥
 
 सिन्दूरी सपने हुए, सपनीले दिन-रात।
 फागुन में मीठी लगे, प्रियतम की हर बात॥
 
 -सुबोध श्रीवास्तव
 ५ मार्च २०१२
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