अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है!!

 

रंग लिखे दिन आये

माघ-ढले
रंग-लिखे दिन आये

पंच-पुष्प बाण, सखी
फाग-सखा ने साधे
जप रही हवाएँ हैं
'कान्हा-राधे-राधे’

रास हुए
दिन हैं किरणों-जाये

पनघट पर
सूरज ने मंत्र लिखे नेह के
सतरंगी बोल हुए
कनखी के - देह के

फागुन-सँग
बिरछ-गाछ बौराये

दिन गुलाल-टेसू के
मंतर हैं बाँच रहे
रितु अनंग देवा की गाथा
हर रात कहे

गली-पार
कोई 'होरी' गाये
1
- कुमार रवीन्द्र

५ मार्च २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter