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होली है

 

ऋतुराज घर आए हैं

फूलों का हार लिए
तितलिओं का प्यार लिए
गेहूँ की क्यार लिए
बसंती बयार लिए
धरा हरषायी है

वागीशा की वीणा गूँजी
पीला गुलाल लिए
शिव का साथ लिए
सोलह शृंगार किये
उमा मुस्कायी है

कान्हा की नगरी में
प्रीत की पुकार लिए
मीत का मनुहार लिए
रस-रंग फुहार लिए
राधा सकुचायी है

पकवानों का थाल लिए
पिचकारी रंग लाल लिए
फाग का सुर ताल लिए
सुर्ख़ गुलाबी गाल लिए
गोरी शरमायी है

ढोलक की थाप पर
फगुनाहट की छाप लिए
बहुरंगी आकाश लिए
सर पे बड़ों का हाथ लिए
होली मन भायी है

सजन परदेश में
आँखों में याद लिए
दिल में फरियाद लिए
फोन पे संवाद लिए
होली न भायी है

गरीब के झोपड़े में
रोटी का जुगाड़ लिए
स्नेह का संसार लिए
सरलता की बौछार लिए
होली खिलखिलायी है

ऋता शेखर ‘मधु’ 
५ मार्च २०१२

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