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होली है

 

सुन सखी

होली आई सुन सखी, पिया बसे परदेस
नहीं मिला है आज तक, आवन का संदेस
आवन का संदेस, बात यह किसे बताऊँ
सखि कंप्युटर करत, चाट मैं समझ न पाऊँ
सत्य बिना प्रियतम, ऐसी लगती रंगोली
जैसे श्याम बिना, फीकी मधुबन की होली

मेल और ईमेल सब, आज हो गए जाम
सब विधि कर मैं थक गयी, गया नहीं पैगाम
गया नहीं पैगाम, हार कर फोन मिलाया
बना नहीं संपर्क, हृदय फिर फिर पछताया
तकनीकी इस जगत का, सत्य अनूठा खेल
जगत समाया जेब में, फिर भी गया न मेल

लागी ऐसी लगन सखि, गयी पिया में खोय
कंत पधारे आज सुन, जगा भाग सुख होय
जगा भाग सुख होय, फाल्गुन हरषा मेरा
होली पर पिय मिलन, बना संजोग सुनहरा
चलत राह पर पलट, लखूँ फिर फिर अनुरागी
रही न अँखियन लाज, लगन प्रियतम से लागी

-सत्यनारायण सिंह 
५ मार्च २०१२

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