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                        होली है
                        
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						रस बरसे हर 
						ओर  | 
                       
                      
                    
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					होली है सुखदायिनी, रस बरसे हर 
					ओर 
					ढोल नगाड़े बज रहे, गली-गली में शोर 
					गली-गली में शोर,
					छा रही नयी जवानी 
					भूले लोक-लिहाज, कर रहे सब मनमानी 
					'ठकुरेला' कवि कहें, मधुरता ऐसी 
					घोली 
					मन में बजे मृदंग, थिरकती आई होली 
					 
					होली आई छा गई, मन में नयी उमंग 
					भीतर सुख-बारिश हुई, बाहर बरसें रंग 
					बाहर बरसें रंग, झूमते सब नर-नारी 
					हँसी-ठिठोली करें, मजे लें 
					बारी-बारी 
					'ठकुरेला' कवि कहें, हर तरफ दीखें 
					टोली 
					मिटे आपसी भेद, एकता लायी होली 
					 
					होली आने पर किसे, रहा उम्र का भान 
					बाल, वृद्ध एवं युवा, सब ही हुए समान 
					सब ही हुए समान, उगे आँखों में तारे 
					तोड़े सब तटबंध, और बौराये सारे 
					'ठकुरेला' कवि कहें, प्यार की बोलें बोली 
					जिस से मौका मिले, उसी से हो ली होली 
					 
					होली है मनमोहिनी , छलकाए मधु जाम 
					सब के तन-मन में बसा, आकर मन्मथ काम 
					आकर मन्मथ काम, ख़ुशी में दुनिया सारी 
					उड़ने लगे गुलाल, चली बरबस पिचकारी 
					'ठकुरेला' कवि कहें, भाँग की खायी गोली 
					बौराये सब लोग, मोहिनी डाले होली 
					 
					गोरी बौरायी फिरे, आया छलिया फाग 
					मन में हलचल भर गयी, यह होली की आग 
					यह होली की आग, आपसी वैर भुलाये 
					भाये रंग गुलाल, दूसरी चीज न भाये  
					'ठकुरेला' कवि कहें, कर रही जोरा- जोरी  
					भूली सारे काम, मगन होली में गोरी 
					 
					-त्रिलोक सिंह ठकुरेला   
५ मार्च २०१२ | 
                                       
                                     
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