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होली है!!


गोरा मुखड़ा धूप का (दोहे)


फागुन ने आकर कहा, अपने दिल का हाल
गोरा मुखड़ा धूप का, हुआ शर्म से लाल

रंग न हो तो प्रेम भी, रँगता है संसार
प्रेम न हो तो व्यर्थ है, रंगों का अंबार

तुझको रँगने थी चली, पीली पीली धूप
गोरा तन छूकर हुई, उजली उजली धूप

जाति पाँति के फेर में, वंश न करिये तंग
नया रंग पैदा करें, जुदा जुदा दो रंग

आँखों आँखों में चलें, सारे रंग गुलाल
अपनी होली चल रही, यूँ ही सालों साल

धर्मेन्द्र कुमार सिंह
२५ मार्च २०१३

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