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होली है!!


याद के पाहुन


मन को
फिर महका रहे हैं
याद के पाहुन

कल यहीं एक नीड़ पर था
पंछियो का चहचहाना
बौर वाला
आम पाता
मुस्कुराने का बहाना

आज
ब्रज भी भूल बैठा
बंसरी की धुन

ढोल ताशे चुप हुए अब
फाग राहें नापते हैं
रंग नकली
खूब बिकते
और टेसू ताकते हैं

हाथ
बाँधे तक रहा है
अनमना फागुन...

-सुवर्णा दीक्षित 
२५ मार्च २०१३

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