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होली है!!


फागुन का आना


तुम्हारा स्पर्श था
या रंग गुलाल का?
कि क्यों कपोलों पर है...
कुछ शरमाई सी सुर्खी...?

तुम्हारा स्पर्श था
या पवन फागुन का...?
कि क्यों अलकों में है...
कुछ साँसें-सी प्रिय की

तुम्हारा स्पर्श था
या रस-बूँदों की धारा?
कि क्यों अधरों पर है...
कुछ भीगी सी मोहर प्रीत की

तुम्हारा स्पर्श था
या बसंत पिघलता?
कि क्यों साँसों में है...
कुछ लहरें सी घुलती

तुम्हारा स्पर्श था
या दहक केसर का?
कि क्यों पोरों पर है...
कुछ पीर सी जलती

तुम्हारा स्पर्श था
या सुर बंसरी का?
कि क्यों नैनों में है...
कुछ प्रतीति राधा सी

-स्वाती भालोटिया
२५ मार्च २०१३

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