अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

होली है!!


फागुन है मस्ती भरा
(कुंडलिया)


आओ मित्रों सब लिखें, होली पर कुछ गीत !
फागुन है मस्ती भरा, हो जायेगी प्रीत !!
हो जायेगी प्रीत, सभी के हिया खिलेंगे
छोड़ पुरानी रार, चलो सब गले मिलेंगे
गाये गली दुआर, सखा रे तुम भी गाओ
छोडो नीरस काम, चलो फागुन में आओ !!

होली की ये मस्तियाँ, खूब जमेगा रंग
मौसम मतवाला हुआ, पीकर थोड़ी भंग
पीकर थोड़ी भंग, आम फिरता बौराया
चढ़ने लगा सुरूर, टिकोरे लेकर आया
कोयल देती कूक, लगे है सबको भोली
भौरे ने दी तान, चलो जी खेलें होली !!

होली के त्यौहार में, बिखरे रंग हजार
कोइ खुशी से झूमता, बैठे कुछ मन मार
बैठे कुछ मन मार, भला कैसे रंग डालें
महँगाई का वार, पड़े रोटी के लाले
दिन भर करते काम, मगर खाली है झोली
बच्चा भूखा रोय, भली लगती ना होली !!

-डॉ. प्रदीप शुक्ल
१७ मार्च २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter