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होली मेरे गाँव

फाग-बधावे गा रहा, देखो मेरा गाँव
घूमर-चंग-धमाल से, थिरक रहे हैं पाँव

संग होलिका के जले, अहंकार अन्याय
विजय सत्य की हो सदा, ज्वाला ये समझाय

टीका एक गुलाल का, करता अजब कमाल
बेगाना, अपना करे, लगकर दूजे भाल

रंग-गुलालों से पुता, हर मुखड़ा अनजान
पर अपनापन बाँटता, गुजिया सा पकवान

ठण्डाई इतरा रही, अब तो मेरा काल
सबके सिर असवार मैं, नर-नारी या बाल

जीवन के व्यापार में, हार-जीत सब संग
रोना-हँसना-गम-खुशी, ज्यों होली के रंग

रंग भरा हर हो दिवस, मन में हो त्यौहार
सदा रहे इस गाँव में, भाईचारा-प्यार

- परमजीत कौर रीत
२ मार्च २०१५

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