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उस होली का रंग गुलाबी

उस होली का रंग गुलाबी
मन पर इतना है गहरा
बरसों बीत गए पर लगता
समय वहीं पर है ठहरा

यौवन के पहले फागुन की
तुमने थी पदचाप सुनी
दर्पण के सम्मुख एकाकी
गुपचुप पहनी थी नथुनी
गालों पर टेसू फूले थे
खुद को देख गयीं दुहरा।

प्रथम पुष्प की पंखुड़ियों पर
मँडराया लोभी भँवरा
पाकर स्वीकृति फाग राग की
अब तक भटक रहा सँवरा
उस गुलाल छापे पर अब तक
सुधियों का बैठा पहरा।

भूलभुलैया की मेहराबों
ने देखी लुकछिप होली
जहाँ नेह के अनुबंधों ने
भरी परस्पर थी कौली
समय ताल पर शैवालों का
कोई जाल नहीं छहरा।

- रामशंकर वर्मा
२ मार्च २०१५

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