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रंग जमना चाहिये

रंग उलफ़त का हमें, आँखों में भरना चाहिये
हो गया मौसम है आशिक, कुछ तो सजना चाहिये

है छटा अनुपम अनोखी, हो रहीं अठखेलियाँ
भाभियों का लाल मुखड़ा और करना चाहिये

हो रहा होली का हुडदंग शोर भी कुछ हो रहा
इस तरह शैतानियों का रंग जमना चाहिये

हैं हरे और लाल-पीले, बैंगनी-नीले भी हैं
इस धरा पर रंग में, सबको उतरना चाहिये

रंग हैं सब चाहतों के, और दिल में शोखियाँ
जो भी है दिल में तेरे 'उनसे' भी कहना चाहिये

आज “आभा” ने बनाईं ढेर सारी मट्ठियाँ
एक तो चख लो कि उसका, मान बढ़ना चाहिये

- आभा सक्सेना
१५ मार्च २०१६

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