अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

रंगों का त्यौहार

महके वन उपवन चमन, खिलने लगी उमंग
रोम रोम खिलने लगा, पवन बसंती संग

पीला स्वर्णिम रथ लिए, आया है ऋतुराज
दुल्हन सी धरती सजी, ये बसंत का राज

फागुन लेकर आ गया, रंगों का त्यौहार
लाल गुलाबी फूल ज्यों, धरती का श्रृंगार

सबके अंतस में बही, स्नेह प्रेम की गंग
प्रीत नशे में चूर सब, बिन मदिरा बिन भंग

देता इक संदेस भी, होली का हुड़दंग
भेदभाव सब भूलकर, रँगें सभी इक रंग

- निशा कोठारी 
१५ मार्च २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter