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आ गया फागुन सखी

आ गया फागुन सखी
बहने लगी सुखकर
हवा।

गोद वसुधा की भरी
नव पुष्प-पल्लव अंकुरण से।
प्रेम-रस की गागरी, ले
आई ऋतु मिलने चमन से।
व्योम के पट पर सखी
रंगों भरी छाई
घटा।

द्वार, देहरी, घर सजे
आँगन रची हैं अल्पनाएँ।
पाँव पायल बाँध कर
इठला रहीं नव यौवनाएँ।
सोम रस छलका सखी
मद में भरी महकी
फिजा।

कोकिला की कूक से
धुन बाँसुरी की याद आई।
गोरियों के रूप में
छवि राधिका की झिलमिलाई।
बाग हर मधुबन सखी
हर गाँव वृन्दावन
दिखा।

रंग की ये वादियाँ
मन प्राण प्रमुदित कर रही हैं।
सब दिशाएँ झूमकर
नूतन उमंगें भर रहीं हैं।
अब चलो हम भी सखी
लें पर्व का जी भर
मज़ा।

- कल्पना रामानी
१५ मार्च २०१६

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