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रंग धूरि धरो अपने माथे

ओ जाते हुए वसंत !
विदाई-वन्दन लो
फागुन की यह रंग-धूरि धरो अपने माथे

जब सूर्य-किरन से पिघल-पिघल सब दोष बहे
जब देह-रंध्र नीरोग हुए
फिर मन प्रसन्न
टेसू के लाल-लाल फूलों का चुम्बन ले
सुनहरी धूप धरती तक
आती हो छन-छन

मन की कुत्साओ !
चलो, अग्नि का चुम्बन लो
यह नेह-राग की लपट धरो अपने माथे

इसके पहले बढ़ जाय सूर्य का बल अतिशय
देहाश्रित वैश्वानर को
भखने दो व्यंजन
ये गुंजल गुंझियाओं के और ज़रा कुछ दिन
चटपटे स्वाद में बहने दो
दृग का अंजन

ओ युवतम अभिलाषाओ !
लो, अभिनंदन लो
तुम ऋतु का यह स्वस्तयन धरो अपने माथे

- पंकज परिमल
१५ मार्च २०१६

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