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फागुन से मनुहार

दिवस सुनहरा साँझ शामली
फागुन से मनुहार करे

फगुनाई ने ली अंगड़ाई
ठिठुरे हृदय देख मुस्काये
नेह पिरोकर गूँथी माला
धनियाँ को होरी पहनाये

सिमटी बैठी थी चुप्पी जो
जीवन का विस्तार करे

गदराई सरसों की खुशबू
घूँघट के पट खोल रही है
अलसाई रजनी जीभर कर
सपनों में रँग घोल रही है

इठलाई सुधियों की सरगम
आँगन में झंकार करे

तपी दुपहरी छाँव ढूँढ कर
लगी कोयलोँ के सँग गाने
महुआ के मादक से झौँके
मौसम का मन लगे रिझाने

हँसी ठिठोली रंग-भंग सब
पाहुन सा व्यवहार करें

- कल्पना 'मनोरमा'
१ मार्च २०१७

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