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होली आ गई

धर सतरँगी चुनरी नवल
पग बाँधकर पायल चपल
घट रंग के भर चार
होली आ गई।

तन गईं हर अंग से मिलने
गले पिचकारियाँ
जम गए प्याले गटककर भंग
भर किलकारियाँ

मगरूर हैं आनंद पल
बेनूर, बेदम, गम सकल
ले उत्सवी संसार
होली आ गई।

रंग केसर ने मचाई धूम
घर-घर फाग की
सुर्ख टेसू ने लगा दी
जंगलों में आग सी

सुन कोकिला के सुर मृदुल
लख बौर अंबुआ में विपुल
सब पर लुटाने प्यार
होली आ गई।

शुभ, शगुन के बोल, होठों-
पर सजे हर गीत के
घर विरह का छोड़, दिल-
मिलने चले मनमीत से

करने कपट को बेदखल
हरने हियों के छद्म-छल
फिर से सखी इक बार
होली आ गई।

- कल्पना रामानी
१ मार्च २०१७

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