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रे मन तू भीग जा

रंगों में प्रीत की हो रही बौछार है
रे मन तू भीग जा होली का त्योहार है

पुलक रहा है रोम रोम हुलस रही है रागिनी
रुप रस गंध लिए हुई धरा पावनी
बसंत बना जादूगर मकरंद का अंबार है
रे मन तू भीग जा पुष्प की मनुहार है

गलियों की टोलियों में बाल बाल कृष्ण लगे
गोपियाँ नटखट हुईं पलाश भी हुए सगे
ठिठोलियाँ गूँज रहीं अबीर की भरमार है
रे मन तू भीग जा फागुनी बयार है

हृदय पटल पर घूमती मायूसियों को त्याग दो
कह रही हैं तितलियाँ धमनियों को राग दो
भंग की ठंडई में विचित्र चमत्कार है
रे मन तू भीग जा प्रेम की पुकार है

- ऋता शेखर ‘मधु’
१ मार्च २०१७

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