अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

पवन करे बरजोरी

पवन करे बरजोरी
बुलाए पिया खेले होरी

एक उम्र की देह तपी है
पवन प्यालियों भंग नपी है
उस पे राधा
गोरी - गोरी

बौराया है मौसम मद में
रहे नहीं अब अपनी हद में
चोरी - चोरी
छेड़े छोरी

फूल पलाशी दहक रहे हैं
सपने मन में महक रहे हैं
गाल हुए हैं
रोरी - रोरी

एक तरफ हैं खुली किताबें
जीवन की गढ़तीं महराबें
इन सपनों की
बाँध दतोरी

- राजा अवस्थी 
१ मार्च २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter