अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

कहाँ गया उल्लास

इस होली ने दर्द जगाया
खोया है विश्वास

न धमाल, न फाग गीत
न ठुमरी, चैता, ढोल, मजीरा
तोड़ रहा दम लोकगीत, सुन-
फूहड़ फिल्मी गीत जखीरा
उत्सवधर्मी इस समाज के
बचा नहीं कुछ पास

रंगों में घुल गये रसायन
रहे प्रकृति की लाज उतार
सनक चढ़ी जबसे पश्चिम की
फैशन वाले खुले बजार
परंपरा जो बची-खुची थी
उसका होता नाश

गाली और नशेबाजी में
गायब होता जाता प्यार
गला काटकर गले लगायें
धूर्त भेड़िये और सियार
उत्सव में हुड़दंग खून का
कहाँ गया उल्लास

- योगेन्द्र प्रताप मौर्य
१ मार्च २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter