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 फिर आया फागुन

फिर आया फागुन सखी, लेकर रंग गुलाल
प्रिय ना आये लौट कर, मन को यही मलाल

आयेंगी फिर जायेंगी, ऋतुयें तो हर साल
आयेंगे क्या लौट कर, माँ के बिछुड़े लाल?

थाल सजा बैठी दुल्हन, गूँजे मंगलाचार
लेकिन इक विस्फोट से, टूटे वन्दनवार

आँसू भर खुशियाँ खड़ीं, पूछ रहीं क्या बात
प्रिय लेकर आये नहीं, रंगों की सौगात

फीकी -फीकी धूप है, दिन भी लगे उदास
रंग-गन्ध पर फूल की, खोई कहीं सुवास

अब ऐसी होली जले, जल जायें दुर्भाव
सत्ता हो सुख-शांति की, महकें बस सद्भाव

खिल जायें फिर प्रेम के, मृदुल सुहाने रंग
हृदयों में सद्भाव हो, मन में भरे उमंग

मधुर गन्ध लोबान की, हरे शोक -सन्ताप
दहन होलिका में करें, द्वेष-द्वन्द-अभिशाप

- मधु प्रधान
१ मार्च २०१९

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