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   इस फागुन में
 

व्यथित हुई डाली-डाली
इस फागुन में

कलियाँ सिसकीं हुईं कोपलें रंगहीन
अमराई में साँय-साँय मधु गंधहीन
कुछ मुस्काते फूल चढ़ गये वेदी पर
पत्ते बिखरे आसमान की रेती पर

पूनम ने चादर ऐसी ओढ़ी
रात हुई काली-काली
इस फागुन में

सूरज भी गमगीन गुलाबी गाल नहीं
ऊषा के चेहरे पर लगी गुलाल नहीं
धूप गुनगुनी द्वारे आकर ठिठक गयी
भीतर से पल्ले की साँकल सिसक गयी

खिड़की से झाँकी तो थी हक्की-बक्की
घर-आँगन खाली-खाली
इस फागुन में

कोयल के पंचम सुर में सब राग नये
मारू बाजे सुना रहे कुछ फाग नये
दहकी साँसे जब पलाश वन में घहरे
धरती की आँखों में तब टेसू उतरे

बारूदी हो गये शब्द सब श्रृंगारी
रूप बदल हाली-हाली
इस फागुन में

- उमा प्रसाद लोधी
१ मार्च २०१९

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