अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

बजी फाग की मुरलिया : दोहे

लाया खुशियाँ संग में, होली का त्योहार
खिलने लगे पलाश अब, मन में कई हजार

छिड़ी गाँव अरु शहर में, प्रेम- मिलन की जंग
तरह-तरह के रंग से, गात हुआ बदरंग

रूप और रस-गंध की, मादक बही बयार
बाँह पसारे आ गया, फाग प्रेम के द्वार

प्रेम रंग में भीग के, आए साजन याद
महक गया अहसास ज्यों, मन में छवि आबाद

बरसी अखियाँ विरह में, ले प्रियतम की याद
मुरझायी मन की कली, फाग हुआ बरबाद

होली के त्योहार में, जुड़ जाता परिवार
सारे शिकवे दूर हो, दिल की मिटे दरार

रंग रंगीला फाग है, हर्षित है संसार
पकवानों की महक से, बढ़ा आपसी प्यार

प्रियतम ने जब मल दिया, मुख पर लाल गुलाल
मन में फ़ूटी कोपलें, झूमी तन की डाल

होली खेले बिरज में, श्याम बिहारी लाल
राधा प्यारी संग में, ले के हाथ गुलाल

बजी फाग की मुरलिया, हुयी सुरीली तान
तीन रंग में रँग गया, सारा हिंदुस्तान

- डॉ मंजु गुप्ता
१ मार्च २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter