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दिन आ गए

रंगों के दिन, गंधों के दिन
यौवन के अनुबंधों के दिन, आ गए
गानों के दिन, तानों के दिन
रग-रग मोहक प्राणों के दिन, आ गए

पागल बनकर हवा भागती
आप जगाती और जागती, हर ठौर
मन की दुविधा बोझिलता ले
भागी जाती कोमलता दे, किस झौंर

बौरों के दिन, भौंरों के दिन
संग नाचने, औरों के दिन, आ गए

पग-पग घुंघरू, रुनझुन-रुनझुन
फूट रहे हैं, गुनगुन गुनगुन, मधु बोल
स्वर पर स्वर हर नूतन नूतन
सरगम-गत पर चंदन चंदन, है घोल

अंजन के दिन, रंजन के दिन
पल पल मधु अभिनंदन के दिन, आ गए

आँच बनी यह उतरायी है
डाल डाल पर बौरायी है, चाँदनी
पिछल पिछल कर छाँह तलाशे,
अटक भटक मन बाँह तलाशे, मादिनी

छंदों के दिन, बंदों के दिन
मन के गोरख धंधों के दिन,आ गए

फूल फूल पर, मदिर ऋचाएँ
गाकर धरती, मधुर कथाएँ, बाँचती
सोंधी सोंधी, मींड़ रेत की
बुढ़िया दादी, पीर खेत की, आँजती

अधों के दिन, कंधों के दिन
रंग-बिरंगे, फंदों के दिन, आ गए!

- संजय पंकज
१ मार्च २०२०

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