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अबकी होली में

मौसम कुछ बदला बदला है
अबकी होली में

मदिर हवाएँ फागुन वाली
सहमी सहमी हैं
आवारा मेघों को कुछ
ज्यादा खुशफहमी है
कुटिल वंचकों ने मौसम को
ऐसा भरमाया
आग लगा दी, हर आँगन की
हँसी ठिठोली में।

रंग खेलने से गलियों में
सखियाँ डरती हैं
मुस्कानों के पीछे अनगिन
घातें पलती हैं
शंका के विषधर ने अपना
फन फैलाया है
जाने कौन छुपा दुश्मन हो
अपनी टोली में

बचपन की आँखों में सपने
रंग रंगीले हैं
हाथों में पिचकारी, मुखड़े
नीले-पीले हैं
मस्ती, हँसी-हुलास भरे मन
खिलते सुरधनु से
कोई जहर भरे ना इनकी
मीठी बोली में।

- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
१ मार्च २०२०

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