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मौसम है रंगों भरा

मौसम है रंगों भरा दहके फूल पलाश
धरती लाल गुलाल सी सतरंगी आकाश

खिली फागुनी धूप जो घर-घर छत गुलज़ार
कचरी पापड़ साथ में सूखें बड़ी अचार

दादा पोते की हुई कोई गुपचुप बात
लाए दादी के लिए होली की सौगात

पिया बसे परदेस हैं नहीं सुहाए फाग
संदेसे की आस में राह निहारूँ जाग

आलम है मस्ती भरा भंग चढ़ी है खूब
होली की हुड़दंग में तन-मन जाए डूब

सतरंगी आँगन हुआ उड़े अबीर गुलाल
पीहर हो या सासरा सखियों संग धमाल

राधा सा यह तन हुआ मन है कृष्णा धाम
रंग चढ़ा यूँ प्रीत का महके रंग तमाम

- आभा खरे
१ मार्च २०२२
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