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बसंत का रूप

दसों दिशाओं में खिला जब बसंत का रूप
इठलाती-सी फिर रही बाग-बगीचे धूप

बाग-बगीचे रो दिए हिचकी भरी दिगंत
पता चला जब छोड़कर जाने लगा बसंत

बिखर गयीं सब पंखुरीं क्षीण हुआ मकरंद
टूटा जिस दिन डाल से फूलों का संबंध

शर्मीली कलियाँ सभी खिलकर हुईं निहाल
तरुणाई में छू लिए जब बसंत ने गाल

फूल कली तितली भ्रमर सबकी दशा विचित्र
यों बदला ऋतुराज ने सबका चाल चरित्र

एक अबीरी-सी छुअन ने रंग दिए दिगंत
देह फागुनी हो गयी मन हो गया वसंत

- देवेश दीक्षित देव
१ मार्च २०२२
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