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छैल छबीली फागुनी

छैल छबीली फागुनी मन मयूर मकरंद
ढोल मँजीरे दादरा बजे हृदय में छंद

मौसम ने पाती लिखी उड़ा गुलाबी रंग
पात पात फागुन धरे उत्सव वाले चंग

फगुनाहट से भर गई मस्ती भरी उमंग
रोला ठुमरी दादरा लगे थिरकने अंग

फागुन आयो री सखी फूलों उडी सुगंध
बौराया मनवा हँसे नेह सिक्त अनुबंध

मौसम में केसर घुला मदमाता अनुराग
मस्ती के दिन चार है फागुन गाये फाग

फागुन में ऐसा लगे जैसे बरसी आग
अंग अंग शीतल करें खुशबु वाला बाग़

फागुन लेकर आ गया रंगो की सौगात
रंग बिरंगी तितलियाँ भँवरों की बारात

सुबह सबेरे वाटिका गंधो भरी सराय
गर्म गर्म चुस्की भरी पियें मसाला चाय

सूरज भी चटका रहा गुलमोहर में आग
भवरों को होने लगा फूलों से अनुराग

चटक नशीले मन भरे गुलमोहर में रंग
घने वृक्ष की छाँव में मनवा मस्त मलंग

- शशि पुरवार
१ मार्च २०२२
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