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वैर द्वेष को जला जिएँ

वैर-द्वेष को जला जिएँ संदेश दिया है
होली पहले जली उदाहरण पेश किया है

बची-खुची कटुताएँ भूलें रंग लगा कर
गले मिलें बाहों में झूलें रंग लगा कर
सूखे रंग रँगे चेहरों की देख छटाएँ
रंग उड़ें सतरंगी इंद्रधनुष बन जाएँ
गीले रंगों ने केवल आवेश दिया है

संस्कृति के रंगों को जिसने जब भी छेड़ा
जीवन में उसको ही अकसर गया खदेड़ा
होली दीवाली ही जलती उच्छृंखलता
आते हैं त्योहार लिए सद्भाव सहिष्णुता
रंगों ने त्योहारों पर ही प्रवेश किया है

सुख-दुख लाभ-हानि बंधन के होते अपने
रंग-ढँग त्योहारों पर दिखलाते सपने
इसीलिए आते त्योहारों के दिन ‘आकुल’
तन्हा गए मनाए हैं त्योहार न बिल्कुल
रंगों की संस्कृति में ही हर देश जिया है

- आकुल
१ मार्च २०२२
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