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रंग न गहरे

उत्सव-पर्व व्याधि के पहरे
अब फाल्गुन के रंग न गहरे

सखियों से अठखेली भूली
बरजोरी हुरियारों की
गाल गुलाल लगाने के हित
मनुहारों-प्रतिकारों की
दृश्य अदृश्य कहीं सब ठहरे
अब फाल्गुन के रंग न गहरे

होली की निस्तेज उमंगे
मिलने जुलने के अवसर
गुज़ियों का गुम स्वाद अलहदा
भांग बूटियों के चक्कर
ढोल नगाड़े गूंगे बहरे
अब फाल्गुन के रंग न गहरे

किसकी नज़र लगी धरती पर
भूले जो टेसू खिलना
सरसों ने छोड़ा इतराना
मादक महुए ने गिरना
नहीं बसंती दिवस सुनहरे
अब फाल्गुन के रंग न गहरे

- अमित खरे
१ मार्च २०२२
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