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मनाएँगे मगर होली

बनी त्रासद महामारी
मनाएँगे मगर होली

सभी हिलमिल के तापेंगे
सभी हिलमिल के खेलेंगे
सभी ढोलक मँजीरे संग
फाग के रंग घोलेंगे
घरों की कैद से बाहर-
सजी होलिहार की टोली

इलेक्शन हार बैठे जो
तिजोरी हो गयी खाली
उधर चमचे नदारद सब
इधर रूठी है घरवाली
लिये मायूस सी मुश्की-
बधाई भी कसक घोली

इधर यदि आम कुचियाये
उधर टेसू भी मुसकाये
हवा में चंदनी खुशबू
बसंती रंग बिखराये
मदन-मद-मस्त जन-मानस
सजाये प्रीति की डोली

अनिल कुमार वर्मा
१ मार्च २०२२
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