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तुम्हें पता क्या

तुम्हें पता क्या
बागों में बगरा बसंत है
पहले जैसा

कल आमों में बौर लदे थे
आज फले हैं हरे टिकोरे
घूम रहा है भ्रमर ढीठ यह
मूँछें पाटल रस में बोरे
तुम्हें पता क्या
प्यार अनोखा भी अनंत है
पहले जैसा

कल कोयल ने तुम्हें पुकारा
रही रात भर फागुन संग में
आज भोर में बदली-बदली
कल थी रंगी होलिका रंग में
तुम्हें पता क्या
बहका हर दिन यहाँ संत है
पहले जैसा

सेमल टेसू कचनारी दल
बिना गंध के खड़े राह में
देह तुम्हारी कमल सुगंधा
भर लेती है मुझे बाँह में
तुम्हें पता क्या
समाचार यह दिग्दिगंत है
पहले जैसा

- ब्रजनाथ श्रीवास्तव
१ मार्च २०२२
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