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तुम बिन होली

तुम बिन होली
कैसी होली

मधुऋतु का आह्वान सुना तो
जाग उठीं अलसाई कलियाँ
बौरे आम मंजरी महकी
महक रहीं बृज की सब गलियाँ
फूल-फूल से करें बतकही
झूम-झूम
अलियों की टोली

कुछ तरंग भंग की सिर पर
कुछ मौसम का असर दिख रहा
झूम रहे होरियारे मद में
फिर अदेह नव कथा लिख रहा
सरसों ने फिर ली अंगड़ाई
उम्मीदें ले
पछुआ डोली

बीते कितने बरस द्वार पर
बैठी नयन बिछाये राधा
कहीं देह है कहीं प्राण हैं
बँटा हुआ मन आधा -आधा
है उदास आँगन, देहरी भी
फीकी-फीकी
है रंगोली

- मधु प्रधान
१ मार्च २०२२
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