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फागुन आया

फागुन आया अब रंगों की
उड़ने लगी फुहार

ऋतु वासंती सरसों पीली
है धानी चूनर
कोयल कूक रही है काली
हवा बहे सर सर
ठंड गुलाबी अभी गयी है
देकर नव उपहार

देख टिकोरे, है महुए की
भौंहें तनी तनी
टेसू के संग अमलतास की
जमकर खूब छनी
रार न ठानें इस मौसम में
कहने लगी बयार

नीले नभ में घटा जामुनी
लगा रही फेरी
देख देख मुस्काता बचपन
रंगों की ढेरी
निरख श्याम को गौर राधिका
करे नैन से वार

किरण अबीरी खोल रही है
घूँघट धरती का
घोल रही रस घट घट में फिर
लेकर मस्ती का
भरें रंग से सभी गागरी
होली के दिन चार

- श्रीधर आचार्य "शील"
१ मार्च २०२२
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