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     फागुन की कैसी मादकता

गाए है फाग, भर विपुल स्वांग
नाचे है कोई तिक् धा-तिक् धा
फागुन की ऐसी मादकता

कैसा गेहूँ का अल्हड़पन
वल्लरी मटर की नथनी पहन
यौवन-मद से उठता-गिरता
फागुन की ऐसी मादकता

अरहर पायल-सी रुनझुन से
कहता है हर इक साजन से-
तू विरह-व्यथा क्योंकर सहता!
फागुन की ऐसी मादकता

कोई रंग-अबीर लिए झोली
कोई पिए, कोई खाए गोली
सबके अधरों पर चंचलता
फागुन की ऐसी मादकता

- राममूर्ति सिंह 'अधीर'
१ मार्च २०२३
   

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