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        दिन फागुन के

लगे जिया नहिं बिन पाहुन के
लो! आये हैं दिन फागुन के

रंग-अबीरा चंदन-रोली
मौसम ने है मिसरी घोली
हवा वसंती सर सर डोले
बोल रही है होली होली

मचल रही है सभी दिशाएँ
हंसी ठहाके उनकी सुन के

भीगे चूनर गागर फूटे
कोई रूठे कोई छूटे
रंगों से हों सराबोर पर
मर्यादा के बंध न टूटे
रंगों के इस महापर्व में
सही रंग इक लें हम चुन के

पीर किसी की कुछ हरने दो
अपने मन का कुछ करने दो
टेसू से कुछ रंग चुराकर
प्रेम प्रीति का रंग भरने दो
सुनो कबीरा! झीनी मुझको
देना एक चदरिया बुन के

- श्रीधर आचार्य शील
१ मार्च २०२३
   

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