अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है!!

 

होली के रंग


होली के रंग छाएँगे
कोई न हो उदास
मौसम ही सब समाएँगे
कोई न हो उदास

नदियाँ ही रंग लाई हैं
तितली के पँखों से
ध्वनियाँ मधुर सुनाई दें
पूजा के शँखो से
पँछी भी चहचहाएँगे
आ जाएँ आस पास
होली के रंग छाएँगे
कोई न हो उदास

पुरवाईयो ने बाग बाग
पात झराए
बागो से उड़ी खुशबूओं ने
भँबरे बुलाए
अमिया हुई सुनहरी
मौसम का है अंदाज
बोली के ढँग आएँगे
कोई न हो उदास
होली के रंग छाँएँगे
कोई न हो उदास ।

-कमलेश कुमार दीवान
१ मार्च २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter