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ज्योति पर्व
संकलन

 

लघुदीप

हम लघु दीपों के समान ही
जले ज्योति ले
और ज्योति से ज्योति मिला कर
रहे जागते

क्षण-क्षण के संशय संभ्रम
जो मिले सामने
वो हम सब से पराभूत हो
रहे भागते

आत्म निशा के अँधकार के
अंतराल में
हम सुषमा के प्रमुदित सपने
रहे पालते

बुझने से पहले
प्रयाण करने से पहले
शुभागमन हम
सूर्योदय का रहे साजते

-केदारनाथ अग्रवाल

  

ज्योतिपथ

दीप है वनवास में औ'
बाती बिरहन सी खड़ी
अँधियारे के द्वार पर
रोशनी रेहन पड़ी

दीप आए जब तलक
न यामिनी को मैं छलूँगा
मोल हो निज प्राण चाहे
दीप बन कर मैं जलूँगा

मैं जला तो संग मेरे
सूर्य को जलना पड़ेगा
मेरे पीछे ज्योतिपथ पर
विश्व को चलना पड़ेगा

व्यर्थ है दीपावली जो
एक लौ भी डगमगाए
व्यर्थ झिलमिल दीप की
गर हर नयन न जगमगाए

डबडबाते हर नयन
उल्लास बन कर मैं चलूँगा
दीपावली की रात का
आभास बन कर मैं चलूँगा

मैं चला तो संग मेरे
ज्योति को चलना पड़ेगा
मेरे पीछे ज्योतिपथ पर
विश्व को चलना पड़ेगा

-दिव्य

 

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