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आस्ट्रेलिया से कवि सम्मेलन  


 

 

 

नेता हमें बता दे
(ऐ दिल हमें बता दे : पैरोडी)

नेता हमें बता दें तू क्यों सता रहा है
भाला है फिर भी खुद को,
भोला बता रहा है

जनता के पास जाना अब तू संभल संभल के
शायद ये भाग्य जागे फिर दल बदल बदल के
दल–लल्ला दल–लल्ला दल–लल्ला दल–लल्ला
क्यों जाति का ज़हर तू जल में मिला रहा है
कुल नाश करके कुल का क्यों कुलबुला रहा है
नेता हमें बता दे तू क्यों सता रहा है
भाला है फिर भी खुद को,
भोला बता रहा है।

पूरा सना हुआ है रिश्वत की कीच में तू
लेकिन बड़े सुनहरी नारों के बीच में तू
पल–लल्ला पल–लल्ला पल–लल्ला पल–लल्ला
वादों की वादियों में तू क्यों झुला रहा है
बेवक्त की लोरियों से तू क्यों सुना रहा है
नेता हमें बता दे तू क्यों सता रहा है
भाला है फिर भी खुद को,
भोला बता रहा है।

अब तू नहीं सुहाए जब बार–बार आए
जनता सुकून पाए गर तू कहीं भी जाए
चल–लल्ला चल– लल् ला चल– लल् ला चल– लल् ला
झूठी कहानियाँ फिर तू क्यों सुना रहा है
जनता की भावनाएँ तू क्यों भूना रहा है
नेता हमें बता दे तू क्यों सता रहा है
भाला है फिर भी खुद को,
भोला बता रहा है।

सीमा पे जा के तू लड़ जो युद्ध है गंवारा
होगा शहीद जब तू होगा तभी हमारा
भल–लल्ला भल–ल ल्ला भल–ल ल्ला भल–ल ल्ला
निस्वार्थ सेवियों को जन मन बुला रहा है
इन भ्रष्ट पापियों से वो बिलबिला रहा है
नेता हमें बता दें तू क्यों सता रहा है
भाला है फिर भी खुद को,
भोला बता रहा है।

—बागेश्री चक्रधर

मुक्तक


आँख में आँसू थे चिड़िया के दुख घनेरा था
पूरे जंगल को उसने पूरे दम से टेरा था
ठूंठ पर ठाठ से अधलेटी कुल्हाड़ी ने कहा
वो पेड़ कट गया जिस पर तेरा बसेरा था


मैं भला कैसे बताऊँ, बता ज़माने को
कितनी शिद्दत से लड़ा हूँ मैं जां बचाने को
डाल से टूट के पत्ते ने हवा से पूछा
क्या तुझे मैं ही मिला ज़ोर आज़माने को


ज़िंदगी चीज़ क्या है कब समझ में आता है
ज़िंदगी के अलावा सब समझ में आता है
जिं.दगी बीतने के जब कगार पर होती
जिं.दगी चीज़ क्या है तब समझ में आता है


एक मधुरिम मृदल स्वरों सी है
दूसरी ज़न्नते फिर्दोसी हैं
हिंदी उर्दू से बताऊं नाता
एक मां है तो एक मौसी है


स्वर्णमृग एक दुकां में मिलता है
हाय सीता का मन मचलता है
क्या करें रामजी की तनख्वाह में
इन दिनों काम नहीं चलता है


राह की लीक जिसने छोड़ी है
गाँव की बेलगाम घोड़ी है
उसको रोकोगे ना रुक पाएगी
क्या करें उम्र ही निगोड़ी है

 

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