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          बाण फिर कोदंड पर

 
राम ने क्षण में चढ़ाया
बाण फिर कोदंड पर

आसुरी उद्घोष ऊँचा उठ रहा था
सिर उठाती थी कहीं दारूण समस्या
जब उन्हें ललकारती, आवाज़ देती
एक विश्वामित्र की खंडित तपस्या
राम आखिर राम थे, तो -
वे न क्यों होते मुखर?

जब किसी सत्कर्म ने प्रतिफल न पाया
हर निरंकुश यत्न को मिलती सफलता
हो गई लंकेश के छल से पराजित
जिस समय में स्वयं सीता की सरलता
धुंध सी घिरने लगी
आकाश में आठों पहर

धार के विपरीत भी बहना पड़े तो
वीर का नैराश्य से परिणय न होगा
जो जगत में वीर हैं उनसे कभी भी
संकटों में शांति का अभिनय न होगा
क्यों न हो संधान तब जब
सामने दिखता समर

- चित्रांश वाघमारे
१ अक्टूबर २०२५

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