अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नमन कोदंडधारी को

 
जनम लेकर धरा पर
जो जगत को तारने आया
ऋषी मुनियों की रखवाली में
था वनवास अपनाया
बना जो धर्म का रक्षक
नमन उस धर्मचारी को
नमन कोदंडधारी को

समाजिक रीतियों से जो
कभी भी नहीं घबराया
निभाए वचन सबके ही
नहीं विद्वेष अपनाया
चुनी मर्यादाएँ जिसने
नमन उस संस्कारी को
नमन कोदंडधारी को

जो मंगल का भवन है औ'
अमंगल दूर करता है
शिलाओं में भी जीवन-
दानकर अमरत्व भरता है
जो हर मन के तमस हरता
नमन उस चमत्कारी को
नमन कोदंडधारी को

- पूर्णिमा वर्मन
१ अक्टूबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter