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          प्रिय धनुष कोदंड

 
प्रिय धनुष कोदंड है प्रभु राम का
धर्महित स्थापित अटल प्रतिमान का

आसुरी जब बढ़ रही थी शक्तियाँ
यज्ञ की खंडित हुई थी वेदियाँ
ज़िन्दगी ऋषियों की दूभर हो गयी
ज्ञान की गंगा प्रदूषित हो गयी
तब समय आया धर्म
निष्काम का

है अलौकिक बाँस निर्मित यह धनुष
हर दिशा करता स्तंभित यह धनुष
लक्ष्य अपना भेदकर यह लौटता
नाम सुनकर शत्रु थर थर काँपता
यह समय देता नहीं विश्राम का

सिंधु काँपा था सुनी टंकार जब
और सीमित कर लिया आकार तब
सेतु का निर्माण संभव हो गया
पथ स्वयं आलोक से था भर गया
प्रभु स्वयं करते चयन
परिणाम का

शस्त्र पूजन का समय है आ गया
फिर सनातन पर है खतरा छा गया
सिद्ध कर दें भक्त हैं हम राम के
दुश्मनों के काल आठों याम के
स्वर यही हो हर नगर
हर ग्राम का

- सुरेन्द्र पाल वैद्य
१ अक्टूबर २०२५

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