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          राम फिर कोदंड धारे

 
रावणो!
जा भाग, अब हो जा किनारे
आ गए हैं राम फिर
कोदंड धारे!

यह प्रबल कोदंड घन- टंकार वाला
अरि दमन का अस्त्र है संहार वाला
आ झुकाएँ शीश धनु की प्रार्थना में
चित्र मन में राम का
सुंदर उतारें!

रूप यह श्रीराम का रणधीर वाला
भरे शाणित तीर से तूणीर वाला!
पहन नव परिकर नए परिधान में यह
रम्यता प्रभु राम की
आओ निहारे!

यह अमोघ अचूक नव कोदंड का शर
झेल पायेगा नहीं कोई कुटिल नर
हम सभी हैं हिंद के कोदंडधारी
हम नया भारत
नए रंग से सँवारे!

- उदय शंकर सिंह उदय
१ अक्टूबर २०२५

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