अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     

          देखिये कुहासा है

छुप रहा आँख से सवेरा है
दूर तक देखिये कुहासा है

हाथ को हाथ तक नहीं सूझे
धुंध का भी बड़ा तमाशा है

सब नज़ारे छुपे ढके से है
आज कुहरा गज़ब का छाया है
 
देख नीहार तो लगे जैसे
बादलों को उतार लाया है

कोहरे की सफेद चादर में
गुम हुआ ये जहान सारा है

कोहरा राज छुपाए है कुछ
चीज़ मशकूक कुछ ज़ियादा है

जब गज़ल कोहरे की होती है
हर 'अमित' शेर भीग जाता है

- अमित खरे
१ दिसंबर २०२१
     

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter