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        रात चाँद और कोहरा

रात चाँद से पूछा
मैंने, घर का पता
पर चाँद कोहरे की चादर लपेट कर खो गया कहीं
क्षितिज में एक सर्द मौसम की अकेली सी रात में -
तन्हा सा

बाँट गयी यामिनी
एक दिवस एक स्वर्णिम किरण
हँसता हुआ शिशु लिखता हुआ गीत
कोहरे और धुंध से लिखी अनेको संवेदनाएँ
हर कोई ढूँढ़ रहा है सवेरा
मन तृप्त करता संगीत

क्षितिज के
किसी कोने में धूप का टुकड़ा दुबका पड़ा है
आसमान में हैं सर्द कोहरा
पर मेरे शहर की दोपहर मंजिलों से दूर जल रही है
मौसम की रातें
न जाने किस सफ़र में हैं

ख़ुशी कल रात
घने कोहरे में कुछ ठगी सी मिली
सुबह बिखराने थे मोती सच्चे
पर न जाने रास्तों में
किन मेहरबानों से मिली
कहने लगी कि झूठ ही
कलयुगी दुनिया में सबसे बली

- मंजुल भटनागर

१ दिसंबर २०२१

     

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