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          घिर रहा कुहरा

घिर रहा कुहरा यहाँ पर
छा गया देखो कुहासा

मौसमों की मोहिनी से
वक्त जैसे जम गया है
राह का कोई मुसाफिर
मुग्ध होकर थम गया है

पास होने की ललक है
दूर होने की हताशा

सूझता कुछ भी नही है
छा रहा ऐसा धुँधलका
रौशनी का घट कि जैसे
बहुत दिन से नही छलका

प्यास किसकी बुझ सकी है
राह गया है कौन प्यासा?

एक कुहरा बादलों में
एक कुहरा आँख पर है
आँख का कुहरा छँटा या -
रह गया, किसको खबर है

दृष्टि सच को सच कहेगी
या कहेगी बस तमाशा?

- चित्रांश वाघमारे

१ दिसंबर २०२१
     

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