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         धुंध में डूबी हुई सुबहें

धुंध में डूबी हुई सुबहें
और कुहरे में ढकी ये शाम
हो गये है गुम कुहासों में
रंग अम्बर के सभी अभिराम

धूप की सहमी हुई चिड़िया
पंख अपने तोलती पल छिन
सो रहे दुबके रजाई में
देर तक घुटने समेटे दिन
काम से हारा-थका सूरज
बादलों में कर रहा विश्राम

पातियाँ लेकर सिरहनों की
द्वार खटकाए हवाओं ने
बन्द रखी खिड़कियाँ लेकिन
धुंध में डूबी दिशाओं ने
लौट आईं द्वार पर धरकर
फिर हवाएँ शीत का पैगाम

झील, नदिया, वन, पहाड़ों के
दृश्य सारे हो गये ओझल
अब न काटे कट रहे ऐसे
दिन हुये बेरंग औ' बोझिल
आँच से आओ अलावों की
उँगलियों को दे तनिक आराम

झर रहे है स्वप्न रातों के
फूल बनकर हरसिंगारों के
एक खुशबू सी लिये मन में
लौटती यादें चिनारों से
लौट आता साथ अधरों पर
अनकहे ही तुम्हारा नाम

- मधु शुक्ला
१ दिसंबर २०२१

     

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