अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     

          बहुत कोहरा है

तुम नहीं जाना सड़क पर
बहुत कोहरा है

कान सबके बन्द हैं
सुनते नहीं हैं स्वर
और मुँह में ठंढ से
हैं जम गये अक्षर
हो रहीं धुँधली दिशाएँ
आज सिहरा है

तुम पहन कर फटा स्वेटर
यदि गये बाहर
देह काँपेगी अकेली
है फटी चादर
पीर देती है कचोके
दर्द गहरा है

प्रश्न की परछाइयाँ
अब भी अनोखी हैं
आस की तनहाइयाँ भी
खूब चोखी हैं
क़ैद सपने आँसुओं का
कड़ा पहरा है

- डॉ. रंजना वर्मा
१ दिसंबर २०२१
     

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter